(कालाहीरा न्यूज)
दीपका। भू विस्थापित निर्मला तिवारी को 1981 में भूमि अधिग्रहण के बदले नौकरी में धोखाधड़ी के बाद उच्च न्यायालय ने उनके बेटे को नौकरी देने का आदेश दिया। न्यायालय ने एसईसीएल की गलती सुधारते हुए याचिकाकर्ता के हक को बहाल किया। महिला को 30 साल कानूनी लड़ाई लडने के बाद उच्च न्यायालय से न्याय मिला है।
जस्टिस संजय के अग्रवाल की सिंगल बेंच ने गैर व्यक्ति को नौकरी देने के 6 जुलाई को जारी आदेश को निरस्त करते हुए भूमि अधिग्रहण के एवज में याचिकाकर्ता महिला के बेटे को नौकरी देने के आदेश दिया है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि सार्वजनिक उपक्रम को निष्पक्षता और सद्भावना से काम करना चाहिए, गलती की सजा याचिकाकर्ता को नहीं मिलनी चाहिए। दरअसल, कोरबा-दीपका क्षेत्र की निर्मला तिवारी की 0.21 एकड़ जमीन 1981 में कोयला खदान के लिए अधिग्रहित की गई थी। जिसके बदले में एसईसीएल को पुनर्वास नीति के तहत उन्हें मुआवजा और उनके परिवार के सदस्य को नौकरी देनी थी। मुआवजा तो 1985 में दे दिया गया, लेकिन नौकरी एक फर्जी व्यक्ति को दे दी गई, जिसने खुद को याचिकाकर्ता का बेटा बताकर नौकरी हासिल की थी।





